poetry :- हुनर

ये कहानी हे उस लड़के की जो  ट्रैन में कुछ रूपए के खातिर भूका प्यासा करतब दिखा रहा हे ट्रैन में एक आदमी और बैठा हे जो उसे देख रहा हे गौर से और उसकी जुबानी लड़के का दर्द कलम से कागज पे उतार रहा है



छत नहीं जिनके सर पे वह अहंकार से क्या बोलेगें
रख कर जान हथेली पर दिल थाम कर जब बोलेगे
अरे क्या गुनाह किया था हमने जो हमे ये वरदान मिला
अपना जमीं बेचकर तुम लोगो को कुछ कमाने का अवतार मिला




हम भी उसी देश के वासी हे जिस धरती पे तुमने जन्म लिया
फिर क्या खूब दिखाया रंग खुदा ने ऊच नीच का फर्क किया
हुनर देकर हम लोगो को सड़को पे यु छोड़ दिया
जा खूब कमा ले बेटा मेने तुझे तोड़ दिया

बताया तो था उसी दिन खुदा ने ये हुनर का ही तमाशा हे पर
न हो पैसा जिसके पास बस वही से गरीबी की परिभाषा है
देख रहा था उसको में उसने क्या कमाल किया
पर बात आयी जब रुपये की तो किस्मत ने नाकार किया


फिर एक दिन 
घूमा समय का पैसा हुआ किस्मत का खुलासा

एक दिन खुदा ने ऐसा कुछ कमाल किया रख कर भरोसा हुनर पर उसके
एक फ़रिश्ते को उसके नाम किया
देख रहा था सब कुछ में जो खेल खुदा ने छेड़ा था
साँसे थाम कर उसकी दुनिया से रिश्ता तोडा था

सब कुछ छोड़ छाड़ कर  रिश्ते तोड़ ताड़ कर
आया वो खुदा के पास कुछ देखा नहीं बस पूछा एक ही सवाल
की हुआ क्यों ये मेरे साथ

बतलाया खुदा ने बेटा ये पूर्व जनम के पाप हे
जो भुगतने तुझे आज हे कुछ कर्म साथ हे तो  हुनर तेरे पास हे
बस इतनी सी बात हे जो समझनी तुझे आज हे
इसलिए आया तू मेरे पास हे बस यही तेरा पश्याताप हे
क्युकी
हुनर हुनर की बात हे
कही दिन तो कही रात हे
इस हुनर के खातिर ही तेरा सम्मान हे
वरना इस भीड़ में तू भी अनजान हे
इस भीड़ में तू भी अनजान हे



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