poetry:- चीखती पुकार | chikti pukar |
ये कहानी है उस लड़की की जिसे साथ ये अपराध हुआ हे तो सुनिए क्या कहती है वो लड़की उस लड़की की जुबान लिखने का प्रयास किया है मेने
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तुम इज़्ज़त के भूखे हो नीलाम तुम्ही ने करवाई, जो बात मेरी इज़्ज़त की थी, जो बात मेरी इज़्ज़त की थी तो अग्नि परीक्षा दिलवाई ,अरे एक बहन थी एक बेटी थी में हर घर की एक ज्योति थी अंधेरी उन रातो में जब घर से में निकलती थी, पीछा करता दीख एक
साया, पीछा करता दीख एक साया डर डर कर में चलती थी उन्ही अंधेरी रातो में एक हाथ ने मुझको छू लिया एक नए मुह पकड़ा दूजे ने दामन खीच लिया अरे चीख रही थी चिल्ला रही थी बचाने को में पुकार रही थी देख रही थी तमाशा दुनिया तस्वीरे भी तो खिंची
थी पर चीख सुनकर भी न बोला कोई यही दुनिया की नियति थी अरे कलयुग हो या सतयुग हो इल्ज़ाम हमी पर आता है, कैसा मेकअप था कैसे कपड़े थे रात को क्यों घर से निकली ये ताने सुनकर भी जी घबराता है अरे जब सुना रहे थे दुनिया वाले छोटे कपड़े
पहन कर तू घर से क्यों निकली तब बोल उठी एक माँ बच्ची की आजकल दरिंदगी इतनी बढ़ गयी है समाज मे की छोटी छोटी मासूम बच्चियों जिनको इस शब्द का मतलब तक न पता उन सब के साथ तक ये घिनोना अपराध हो रहा है तो सुनियेगा उस माँ का
जवाब बड़ा ही प्यारा जवाब है अरे जब सुना रहे थे दुनिया वाले छोटे कपड़े पहन कर तू घर से क्यों निकली तो बोल उठी एक माँ बच्ची की................................................ साहब एक 10 साल की बच्ची की साड़ी में कैसे पहनाऊँ दुनिया के दरिंदों ने तो इसे
खेल जान लिया है कभी किसी की बहन पर डाका तो कभी किसी की बेटी का आँचल खीच लिया है, अरे सुना रहे थे दुनिया वाले समझाया था मुझे भी कुछ न कहना किसी से बदनामी होगी तेरे घरवालो की अरे ये सब सुनकर में जीते जी मरती रही पल आया था
एक ऐसा पल आया था एक ऐसा जब मुझे आत्महत्या करनी पड़ी अरे देख रहे थे तमाशा जो वो बोल उठे आज पहली बार क्योंकि मेरी जगह थी वहां पर उनके घर की जयोति बाहर, क्योंकि मेरी जगह थी वहां पर उनके घर की जयोति बाहर।
by- मनीष चक्रधारी
साया, पीछा करता दीख एक साया डर डर कर में चलती थी उन्ही अंधेरी रातो में एक हाथ ने मुझको छू लिया एक नए मुह पकड़ा दूजे ने दामन खीच लिया अरे चीख रही थी चिल्ला रही थी बचाने को में पुकार रही थी देख रही थी तमाशा दुनिया तस्वीरे भी तो खिंची
थी पर चीख सुनकर भी न बोला कोई यही दुनिया की नियति थी अरे कलयुग हो या सतयुग हो इल्ज़ाम हमी पर आता है, कैसा मेकअप था कैसे कपड़े थे रात को क्यों घर से निकली ये ताने सुनकर भी जी घबराता है अरे जब सुना रहे थे दुनिया वाले छोटे कपड़े
पहन कर तू घर से क्यों निकली तब बोल उठी एक माँ बच्ची की आजकल दरिंदगी इतनी बढ़ गयी है समाज मे की छोटी छोटी मासूम बच्चियों जिनको इस शब्द का मतलब तक न पता उन सब के साथ तक ये घिनोना अपराध हो रहा है तो सुनियेगा उस माँ का
जवाब बड़ा ही प्यारा जवाब है अरे जब सुना रहे थे दुनिया वाले छोटे कपड़े पहन कर तू घर से क्यों निकली तो बोल उठी एक माँ बच्ची की................................................ साहब एक 10 साल की बच्ची की साड़ी में कैसे पहनाऊँ दुनिया के दरिंदों ने तो इसे
खेल जान लिया है कभी किसी की बहन पर डाका तो कभी किसी की बेटी का आँचल खीच लिया है, अरे सुना रहे थे दुनिया वाले समझाया था मुझे भी कुछ न कहना किसी से बदनामी होगी तेरे घरवालो की अरे ये सब सुनकर में जीते जी मरती रही पल आया था
एक ऐसा पल आया था एक ऐसा जब मुझे आत्महत्या करनी पड़ी अरे देख रहे थे तमाशा जो वो बोल उठे आज पहली बार क्योंकि मेरी जगह थी वहां पर उनके घर की जयोति बाहर, क्योंकि मेरी जगह थी वहां पर उनके घर की जयोति बाहर।
by- मनीष चक्रधारी
आप इस कविता को यूट्यूब पे भी देख सकते है :-
https://www.youtube.com/watch?v=wI14jKoaHmM&feature=share&fbclid=IwAR1omAKkBESXV_nEg9uOmb8HPFq9xBrSi62MsDrT3tcgf78SGkCBl3bbFp0
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you can also listen this poetry on youtube by this link
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Very well written
ReplyDeletethanks for comment and keep supporting me
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